बैगलोर- आज गणेश बाग में चातुर्मास हेतु विराजित उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा कि व्यक्ति को लोकप्रिय बनने से पूर्व अपने परिवार प्रिय बनना चाहिए। तीर्थंकर प्रभू महावीर ने दो प्रकार की व्यवस्था दी मोक्ष में जाने के लिए। आगार धर्म गृहस्थ धर्म जो चलता नहीं उसको अंग कहते है जो एक स्थान पर बना रहता है उसे अग कहते है जो उडता है उसे खग कहते है जो कंडीशन के साथ चलता है उसे गृहस्थ कहते है तथा जो पाप और पुण्य दोनों भी मर्यादा में रहकर करता है। ऐसी गृहस्थ धर्म-व्यवस्था दी कि जिस गृहस्थ धर्म की आराधना करते हुए भी गृहस्थ मोक्ष में जा सकता है। यदि पापी परिवार होगा तो जन्म लेने वाला भी पापी ही होगा परिवार धर्मी होगा तो व्यक्ति में भी धर्म के संस्कार आ ही जायेगे। जैसा बीज होगा वैसा ही पेड और फल। परिवार धर्म का है तो समाज भी धर्म का हैं। परिवार प्रिय बनो परिवार से प्यार करो। लोकप्रिय बनने के पहले परिवार प्रिय बनो। जो परिवार से प्यार करता है और परिवार जिससे प्यार करता है उसे शांति पाने के लिए कहीं किसी मंदिर में जाने की आवश्यकता नहीं होती है। और जिसके परिवार में शांति नहीं है वह कितना ही धर्म स्थानक आ जाये, कितनी ही धार्मिक यात्रा कर ले सुकुन नहीं मिलेगा। इसलिए सर्वप्रथम परिवार को संभाले। परिवार में प्रेम का माहौल होगा तो वास्तु शांति की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ को गृहस्थ का धर्म सिखाना चाहिए। संत श्रावक को गृहस्थ जीवन को बेहतर बनाने के लिए उपदेश देता है न कि स्वयं की व्यवस्था निर्माण करने के लिए। परिवार प्रिय बनने के लिए कुछ सूत्र उपाध्याय प्रवर ने बताये है:- जिनके साथ जीते हो उन पर विश्वास रखो, जो सुख दुःख में काम आते है उनकी भक्ति करो, श्रद्धा का रिश्ता होगा तो घर धर्म मय होगा। किसी ने कुछ कहा तो क्रास प्रश्न मत करना। दूसरा सूत्र परिवार में किसी से भूल हो जाये पनीसमेंट कभी नहीं करना, भूल को कभी खोजना नहीं चाहिए बल्कि उसे सुधारना (ट्रीटमेंट – Treatment) चाहिए। घर को धर्मी परिवार बनाना है तो टोने टोटकों से दूर रहना चाहिए। प्रभु महावीर ने धर्म को ही मंगल कहा है। घर-परिवार में किसी भी प्रकार की आदेशात्मक भाषा का प्रयोग नहीं करेगा। घर में अभय का दान दीजिए। घर नंदनवन बन जाएगा। व्यक्ति को गृहस्थ धर्म सिखना चाहिए। यदि गृहस्थ धर्म सुधर गया तो जीवन की सारी समस्या जीवन के संबंधों का निर्माण पूर्व जन्म के आधार पर ही हो जाता है। माँ बाप को को केवल पैसे की जरूरत नहीं है उन्हें तो समय की जरूरत है। शुरूआत सबसे पहले अपने घर से करना चाहिए। गृहस्थ को सुधार लिया तो सब कुछ सुधर जायेगा। परिवार को नंदनवन बनाना होगा। ऋषभदेव ने कर्मयोग की शुरूआत करते हुए सबसे पहले उन्होंने जो मंत्र सिखाया। भगवान महावीर शूलपाणि यक्ष के मंदिर में जिसने अत्याचार से गांव बर्बाद कर दिया था जहाँ रात को कोई रूक नहीं सकता था गांव वाले और पुजारी रूकने नहीं देते। लेकिन भगवान महावीर विहार करके शूलपाणि यक्ष के मंदिर में रूकने का निश्चय करते है। एक व्यापारी का सबसे प्रियतम बैल था वह यक्ष पुनर्जन्म में। व्यापारी के बेटे के समान था। नमक का कर्जा जान की बाजी लगाकर चुकाना चाहिए। अंतिम समय का सुख और दुःख अगले जन्म में साथ चलता है। अंतिम समय की फीलिंग (Feeling) मौत के साथ शुरू नहीं होती है। हमारे पाप और पुण्य हमारे साथ चलता है। जहाँ तीर्थंकर का नाम आया वहाँ मिथ्यात्वी को झुकना पडता है। जो स्वयं को दुःख यदि परिवार को नहीं संभाला तो यही हालत होगी। कोई सुनने वाला नहीं । वर्तमान में जापान में भडास सुनने वाले ट्रेनर (Trainer) तैयार हो चुके है। इससे पहले परिवार को संभाले। मोक्ष जाने का रास्ता कोई बताता है तो वे प्रभु महावीर बताते है। गृहस्थ को गृहस्थ का धर्म सिखाना चाहिए। संत श्रावक को उपदेश गृहस्थ जीवन को बेहतर बनाने के लिए उपदेश देता है न कि स्वयं की व्यवस्था निर्माण करने के लिए। गृहस्थ धर्म में दीक्षा जो डिमांड (Demand) करता है उसका सम्मान कोई नहीं करता है।
