I am Anchal pradhan from MP shifted to mumbai after completing mba frm pune. Spent almost 10 years in corporate world earned good name n fame but at the same time did not give importance to health and my body took toll.I got married 3 years back and I got
Author: amitujainind
Sneha Bohra – Bangalore, 2015
Garb sanskaar sadhna gives lot of positivity n mental stability during the toughest days of pregnancy. By doing the cards daily i was confident of inculcating spirituality n emotional strength in me n my unborn…and now tat my son has turned 2,trust me he’s de purest soul around! Thnks to Mita Kothari blore AGS fr teaching me this sadhana
अर्हम पुरुषाकार साधना का अनुभव
🙏इच्छाकारेणं संदीसह भगवं 🙏
🙏 देवगुरुकृपासे 🙏
मेरे पिताजी श्री शांतिलालजी ओस्तवाल को सितंबर 2020 में कैन्सर detect हुआ था। मैंने मेरे गुरुदेव उपाध्याय श्री प्रवीण ऋषिजी से संपर्क किया तो उन्होंने अर्हम पुरुषाकार साधना करने के लिए कहा। साधना सीखने के लिए गुरुदेव ने श्रीमती सपनाजी कोचर से साधना लेने के लिये कहाँ। जब cancer detect हुआ था तब डॉक्टर ने इस बीमारी से उभरने के लिए कमसे कम एक से डेढ़ साल लगेगा, 9 से 12 मेडिसिन के cycle लगेंगे तथा जनवरी के मध्य सर्जरी भी करनी होगी इस तरह का treatment protocol बताया था। गुरुदेव के आशीर्वाद से 10 सितंबर, 2020 को सपनाजी ने online zoom के माध्यम से अर्हम पुरुषाकार की साधना सिखाना चालू किया, सपनाजी ने हर वक्त घंटो तक online साधना करवाकर ली। जिस लगन से सपनाजी ने साधना सिखायी वो मेरे लिए अवर्णनीय है। उस दिन से आज तक मेरे पूज्य पिताजी उस साधना को निरंतर कर रहे है और मेरे पिताजी के 3 मेडिसिन के साइकल पूर्ण होने के पश्चात 21 जनवरी, 2021 को जब पुनः सब टेस्ट किए तब लगभग मेरे पिताजी का cancer पूरी तरह से ठीक हो गया था तथा डॉक्टर ने सितंबर में बतायी हुयी सर्जरी की भी ज़रूरत नही रही, इससे डॉक्टर भी बहुत आश्चर्यचकित रहे और उनके जीवन में भी यह पहला प्रसंग था जब कोई इस बीमारी का patient 9 मेडिसिन cycle से पहले ठीक हुआ। मुझे विश्वास है की ये सब देव-गुरु-धर्म कृपा से, परम पूज्य प्रवीण ऋषिजी महाराज साहब के कृपा से और निरंतर अर्हम पुरुषाकार की साधना से ये चमत्कार हुआ है। मै परम पूज्य प्रवीण ऋषि जी महाराज साहब की और अर्हम विज्जा की अत्यंत-अत्यंत ऋणी हूं ।

अर्हम गर्भ साधना
बीज का स्वभाव, बीज के गुण ही पौधे में, पत्ते में और फूलों में आ जाते हैं। यदि बीज में समस्या होगी तो यह समस्या कई गुना बढकर पत्तों और फूलों में पहुँच जाती है। और अगर बीज में समाधान होगा, तो यह समाधान भी कई गुना बढकर पत्तों और फूलों तक पहुंचता है। पत्ते, फूल और फल पे किए गए उपचार एक अल्पकालिक समाधान है। बीज का शुद्धिकरण ही शाश्वत और सम्पूर्ण समाधान है। यही प्रक्रिया मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन में दिखाई देती है। उसकी सोच, उसकी भावनाएं एवं उसके चरित्र का बीज माँ के गर्भ में तैयार होता है। वहीं उसके भावी जीवन का निर्माण होता है। अपने पिछले जन्म से जीव जो संस्कार लेकर आया है, जो सकारात्मक एवं नकारात्मक गुण लेकर आया है, जो पाप-पुण्य लेकर आया है, इनमे से कौन सा सक्रिय होगा और कौनसा निष्क्रिय रहेगा, इसका निर्णय गर्भ में ही होता है। अर्हम् गर्भसंस्कार साधना का प्रयास है – युगपुरुष का जागरण। यह अर्हम् विज्जा फाउंडेशन के अंतर्गत गर्भसाधना का कार्यक्रम है। युग को परिवर्तन करने वाले व्यक्ति के निर्माण का कार्यक्रम है। यहाँ युगपुरुष का चुनाव लिंग के आधार पर नहीं है, युगनिर्माता नर भी सकता है, नारी भी हो सकती हैं।

लोकप्रिय बनने के पहले परिवार प्रिय बनो 21 जुलाई 2019
बैगलोर- आज गणेश बाग में चातुर्मास हेतु विराजित उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा कि व्यक्ति को लोकप्रिय बनने से पूर्व अपने परिवार प्रिय बनना चाहिए। तीर्थंकर प्रभू महावीर ने दो प्रकार की व्यवस्था दी मोक्ष में जाने के लिए। आगार धर्म गृहस्थ धर्म जो चलता नहीं उसको अंग कहते है जो एक स्थान पर बना रहता है उसे अग कहते है जो उडता है उसे खग कहते है जो कंडीशन के साथ चलता है उसे गृहस्थ कहते है तथा जो पाप और पुण्य दोनों भी मर्यादा में रहकर करता है। ऐसी गृहस्थ धर्म-व्यवस्था दी कि जिस गृहस्थ धर्म की आराधना करते हुए भी गृहस्थ मोक्ष में जा सकता है। यदि पापी परिवार होगा तो जन्म लेने वाला भी पापी ही होगा परिवार धर्मी होगा तो व्यक्ति में भी धर्म के संस्कार आ ही जायेगे। जैसा बीज होगा वैसा ही पेड और फल। परिवार धर्म का है तो समाज भी धर्म का हैं। परिवार प्रिय बनो परिवार से प्यार करो। लोकप्रिय बनने के पहले परिवार प्रिय बनो। जो परिवार से प्यार करता है और परिवार जिससे प्यार करता है उसे शांति पाने के लिए कहीं किसी मंदिर में जाने की आवश्यकता नहीं होती है। और जिसके परिवार में शांति नहीं है वह कितना ही धर्म स्थानक आ जाये, कितनी ही धार्मिक यात्रा कर ले सुकुन नहीं मिलेगा। इसलिए सर्वप्रथम परिवार को संभाले। परिवार में प्रेम का माहौल होगा तो वास्तु शांति की आवश्यकता नहीं है। गृहस्थ को गृहस्थ का धर्म सिखाना चाहिए। संत श्रावक को गृहस्थ जीवन को बेहतर बनाने के लिए उपदेश देता है न कि स्वयं की व्यवस्था निर्माण करने के लिए। परिवार प्रिय बनने के लिए कुछ सूत्र उपाध्याय प्रवर ने बताये है:- जिनके साथ जीते हो उन पर विश्वास रखो, जो सुख दुःख में काम आते है उनकी भक्ति करो, श्रद्धा का रिश्ता होगा तो घर धर्म मय होगा। किसी ने कुछ कहा तो क्रास प्रश्न मत करना। दूसरा सूत्र परिवार में किसी से भूल हो जाये पनीसमेंट कभी नहीं करना, भूल को कभी खोजना नहीं चाहिए बल्कि उसे सुधारना (ट्रीटमेंट – Treatment) चाहिए। घर को धर्मी परिवार बनाना है तो टोने टोटकों से दूर रहना चाहिए। प्रभु महावीर ने धर्म को ही मंगल कहा है। घर-परिवार में किसी भी प्रकार की आदेशात्मक भाषा का प्रयोग नहीं करेगा। घर में अभय का दान दीजिए। घर नंदनवन बन जाएगा। व्यक्ति को गृहस्थ धर्म सिखना चाहिए। यदि गृहस्थ धर्म सुधर गया तो जीवन की सारी समस्या जीवन के संबंधों का निर्माण पूर्व जन्म के आधार पर ही हो जाता है। माँ बाप को को केवल पैसे की जरूरत नहीं है उन्हें तो समय की जरूरत है। शुरूआत सबसे पहले अपने घर से करना चाहिए। गृहस्थ को सुधार लिया तो सब कुछ सुधर जायेगा। परिवार को नंदनवन बनाना होगा। ऋषभदेव ने कर्मयोग की शुरूआत करते हुए सबसे पहले उन्होंने जो मंत्र सिखाया। भगवान महावीर शूलपाणि यक्ष के मंदिर में जिसने अत्याचार से गांव बर्बाद कर दिया था जहाँ रात को कोई रूक नहीं सकता था गांव वाले और पुजारी रूकने नहीं देते। लेकिन भगवान महावीर विहार करके शूलपाणि यक्ष के मंदिर में रूकने का निश्चय करते है। एक व्यापारी का सबसे प्रियतम बैल था वह यक्ष पुनर्जन्म में। व्यापारी के बेटे के समान था। नमक का कर्जा जान की बाजी लगाकर चुकाना चाहिए। अंतिम समय का सुख और दुःख अगले जन्म में साथ चलता है। अंतिम समय की फीलिंग (Feeling) मौत के साथ शुरू नहीं होती है। हमारे पाप और पुण्य हमारे साथ चलता है। जहाँ तीर्थंकर का नाम आया वहाँ मिथ्यात्वी को झुकना पडता है। जो स्वयं को दुःख यदि परिवार को नहीं संभाला तो यही हालत होगी। कोई सुनने वाला नहीं । वर्तमान में जापान में भडास सुनने वाले ट्रेनर (Trainer) तैयार हो चुके है। इससे पहले परिवार को संभाले। मोक्ष जाने का रास्ता कोई बताता है तो वे प्रभु महावीर बताते है। गृहस्थ को गृहस्थ का धर्म सिखाना चाहिए। संत श्रावक को उपदेश गृहस्थ जीवन को बेहतर बनाने के लिए उपदेश देता है न कि स्वयं की व्यवस्था निर्माण करने के लिए। गृहस्थ धर्म में दीक्षा जो डिमांड (Demand) करता है उसका सम्मान कोई नहीं करता है।

भय मुक्त होने पर ही श्रद्धा की प्राप्ति संभव है 23 जुलाई 2019
बैगलोर- गणेश बाग में चातुर्मासिक प्रवचन सभा का आयोजन हुआ। सर्वप्रथम तीर्थेशऋषिजी म. सा. ने बहुत ही सुंदर गीत से प्रवचन सभा का प्रारंभ किया। प्रवचन को बढाते हुए चातुर्मास हेतु विराजित उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीणऋषिजी म. सा. ने फरमाया कि श्रद्धा कैसे प्राप्त हो? श्रद्धा को प्राप्त करने में क्या-क्या बाधाएँ आ सकती है? श्रद्धा को पाने में प्रमुख बाधक तत्व-संशय (डर) है। जिस प्रकार माइक में आवाज रिपीट होने पर मन परेशान हो जाता है वही कार्य संशय करता है। यदि श्रद्धा के मार्ग पर चलना है तो अपने आप से एक कमिटमेंट करनी होगी कि मैं किसी भी परिस्थिति में संशय का शिकार नहीं बनूँगा। हमारे मन में संशय का प्रवेश इस प्रकार होता है जैसे बबूल के पेड को कांटे लगते है। बबूल के कांटे तो दूसरों को चुभते है लेकिन मन के संशय के कांटे स्वयं को ही चुभते रहते है। इसलिए समकित का पहला अतिचार कोई है तो वह शंका है। गुरूदेव ने आगे फरफाया कि शंका स्थिति परिस्थिति के कारण से नहीं होती है वह तो जब होती है तो स्वयं को भी स्पष्टता नहीं होती है कि आखिर मैं क्या चाहता हूँ? हमें पता ही नहीं चलता है कि हमें जो मिल रहा है उससे हम सुखी होगे क्या? आखिर क्या चाहते है हम? क्यों ये शंकायें बार बार मन में उभरती है? उपाध्याय श्री ने कहा कि प्रभु महावीर द्वारा प्रतिपादित कर्म सिद्धांत में संशय का सबसे बड़ा कारण है भय। क्रोध, अहंकार, माया व लोभ इनके कारण शंका नहीं होती है शंका का तो मूल कारण ही भय-डर है। ये डर हमारे भीतर इस कदर छाया है कि निकल ही नहीं पाता है। जब तक डर है संशय है। श्रद्धा की डगर पर चलना है सबसे पहले स्वयं को भय से मुक्त होना चाहिए। हम पल पल भय के साये में जीते रहते है। जब तक मन में भय की ग्रंथि है तब तक चक्षु उद्घाटित नहीं होते है। अज्ञान का अंधियारा बाद में है पहले भय का अॅंधियारा है। जब तक भय को जीत नहीं पायेंगे क्रोध, माया, मोह, लोभ रहेगा ही। कल हमें कुछ मिलेगा कि नहीं इसी चिंता में हम संग्रह करते है। मौत का भय उनको लगता है जिनको इस बात का डर है कि यह शरीर छूट गया तो अगला शरीर कैसा मिलेगा? यही भय हमको सामायिक, माला, प्रेम आदि आराम से करने नहीं देता है। आगे अपने प्रवचन को विस्तार से जाते हुए गुरूदेव फरमाते है यदि प्रमाद नहीं हो तो भय नहीं लगता है सजग व्यक्ति को कभी भय नहीं लगता है। यह आचारांग सूत्र और आज का साइंस भी कहते है। जब तक आप सजग हो भय की कोई संभावना नहीं है। जो प्रमाद करता है वह भयभीत है और जो भयभीत है वह कभी भी कुछ भी कर सकता है। इसलिए सर्वप्रथम कोई श्रद्धा के मार्ग में बाधक है तो वह है भय है। यदि बन सको तो बच्चे के समान बन सको जो माँ की गोद में भयमुक्त रहता है। उसी प्रकार अपने श्रद्धेय के प्रति आस्था हो जाये तो व्यक्ति भयमुक्त बन जाता है। जब तक जीवन में लापरवाही है तब तक भय भी है प्रमाद भी है और कभी कभी इस प्रमाद के कारण से शिखर पर पहुँचा हुआ व्यक्ति भी खाई में गिर जाता है। इसलिए प्रभु महावीर गौतम स्वामी को उसके मन की खिन्नता दूर करने के लिए 36 बार एक ही मंत्र बोलते है-समय में प्रमाद मत कर। बाकी सभी अतिचारों का प्रायश्चित है। लेकिन समय के प्रमाद की तो सजा भुगतनी ही पडती है। सबसे भयंकर अशातना है तो वह समय की अशातना है। भय से मुक्त होना है तो समय की आराधना करो। जिस समय जो कार्य करना है वह कार्य करना ही चाहिए। उपाध्यायश्री ने प्रमाद को दूर करने के उपाय बताये -स्वयं के साथ कमिटमेंट, स्वयं पर स्वयं का अनुशासन, सेल्फ पनिशमेंट (Self-punishment) जो यदि डिसीप्लेन (Discipline) और कमिटमेंट (Commitment) का पालन मुझसे नहीं होता है तो उसका प्रायश्चित लूंगा। संशय जब तक मन में है शांति की अनुभूति नहीं हो सकती है। मेरी गलती और भूल का मैं प्रायश्चित लूंगा । चातुर्मास में तपस्या की कड़ी में पहली 9 उपवास की तपस्या श्रीमती पायल सुराणा ने की। साथ ही सुजाता बाई तालेडा 8 उपवास की तपस्या के पचखाण लिये। गुरूवार को शाम 8.30 से संलेखना संथारा विधि सिखाने का कार्यक्रम होगा। दोपहर 2 बजे अठाई की धारणा होगी। 25 तारीख से आनंद जन्मोत्सव प्रारंभ होगा।