डिस्कवर योरसेल्फ
परिचय
डिस्कवर युवरसेल्फ (Discover Yourself) का कार्यक्रम एक अलग तरीके से जीवन को परिष्कृत (revise) करता है। इसमें न कोई ध्यान साधना होती है और न ही किसी प्रकार की पॉजिटिव थिकींग (Positive Thinking) का सूत्र। एक ऐसी जीवन शैली का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) का एक प्रवाह चलता है और नकारात्मक सोच (Negative Thinking) के लिए कोई जगह ही नहीं बचती है। ऐसा ये डिस्कवर युवरसेल्फ (Discover Yourself) का शिविर निरन्तर चलने वाली एक प्रक्रिया (Process) है। इसलिए परमात्मा प्रभू महावीर ने फ़रमाया है की हर क्रिया में सजग रहना, जिस क्रिया में आप सजग हो जाते हो, उस क्रिया में पाप का बंध नहीं होता है, गलती (Mistake) नहीं होती है। होश में की हुई क्रिया निश्चित रूप से अंतर के सारे आवरण को दूर करती है।
इसलिए डिस्कवर युवरसेल्फ (Discover Yourself) के प्रोग्राम (Program) में – जीवन में रोजाना क्रिया में कैसे 24 घंटे सजग रहना इसका प्रशिक्षण दिया जाता है।
1. कैसे सोते हुए भी जागते रहना?
2. कैसे खाते हुए भी दृष्टा बनना?
3. कैसे चलते हुए भी स्थिर रहना?
4. कैसे बैठते हुए भी गति करना?
5. कैसे बोलते हुए भी मौन में रहना?
इन प्रक्रियाओं को उनके रहस्य के साथ अवगत कराया जाता है।
यह कोर्स क्यों करना है?
हर क्रिया में धर्म है – खाने में, पीने मे, बोलने, चलने, उठने, बैठने में। ‘युक्त आहार विहारस्य’ यही बात गीता में श्रीकृष्ण ने कही – जो आहार और विहार युक्त हो जाता है और यही बात आयुर्वेद में कहते हैं, यही बात सहज ध्यान में कहते हैं। पर उसकी की प्रक्रिया सहज सिखाने का कार्यक्रम डिस्कवर यूवर सेल्फ (Discover Yourself) है।
Contact no. – 9003251000
Itihas
Sidhantic Praman
इन्द्रभूति गौतम ने जीवन से संबंधित एक समस्या भगवान महावीर के समक्ष रखी, “प्रभू मैं चलता हूँ तब भी किसी जीव को पीड़ा होती है, मैं बोलता हूँ, तब भी सूक्ष्म जीवों को कहीं न कहीं आघात पहुँचता है।
कहं चरे, कहं चिठ्ठे, कहं आसे, कहं सए।
कहं भुजंन्तो भासंतो, पावकम्मं न बंध इ ।।(दशवैकालिक ४-७)
ये जीवन से जुड़ा हुआ है और इसका उत्तर भी जीवन में ही है। कैसे चलूं, कैसे खड़े रहूँ, कैसे बैठूँ, कैसे सोऊँ, कैसे भोजन करूँ, कैसे बोलूँ ताकि मेरे पापकर्म का बंध न हो। मेरे अंदर नेगेटिव एनर्जी (Negative Energy) न आए, मैं नेगेटिव एनर्जी (Negative Energy) को ग्रहण (Receive) न करूँ, न ही उसका स्त्रोत बनूँ ।
चलना, खड़े रहना, बैठना, भोजन करना, सोना, बोलना – इनका तरीका बदलना (Change) होगा। जब इनकी शैली में बदलाव आ जाता है, इनका करने का तरीका जब शुद्ध हो जाता है, तो किसी भी प्रकार का पापकर्म का बंध नहीं होता है। इसलिए प्रभू महावीर कैसे सोना, कैसे चलना इसकी विधि सिखाते हैं। जब उनके पास कोई भी व्यक्ति दीक्षा लेता, संयम लेता, तो सबसे पहले उनको इन्हीं 6 बातों का प्रशिक्षण वे देते थे।
Process / Vidhi
जयं चरे, जयं चिठ्ठे, जयं आसे जयं सए ।
जयं भुजंतो भासंतो, पावकम्मं न बंधइ ।।(दशवैकालिक ४-८)
विवेक से चलो। विवेक से बैठो। विवेक से बोलो। विवेक से सोओ। विवेक से खाओ। सब कुछ विवेकपूर्वक होगा तो कहीं भी पापानुबन्ध नहीं होगा। इसका प्रशिक्षण 1994, पुणे से प्रारम्भ हुआ|
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