कर्मा
जैसा भाग्य होगा वैसा मेरा जीवन में होगा, जैसी नियति होगी वैसा ही होगा, जो विधि का विधान होगा वही सत्य होगा। ये सारी पराधीनता को स्वयं को मजबूर बनाने वाली सोच को भ्रम को दूर करने के लिए अर्हम विज्जा का एक विशिष्ट अभियान यू. आर. ए. किंग, यू. आर. गॉड (You are a King, You are God) तुम भाग्य विधाता हो, भाग्य के गुलाम नहीं, बंधे हुए पिछले जन्म के कर्म भोगना अनिवार्य नहीं उन कर्मों को क्षय किया जा सकता है। उन कर्मों को क्षय किया जा सकता है कर्म के विधान में परिवर्तन किया जा सकता है। अपोजिट (Opposite) कर्म का बंध किया जा सकता है। कर्म सत्ता की अनिवार्यता को चुनौती देता हुआ कर्मा का अभियान, मनुष्य के मन से भय को समाप्त करने का एक अनोखा अनुष्ठान है। एक ऐसा बोध, एक ऐसा सोच, एक ऐसे सत्य से साक्षात्कार, कि जिस साक्षात्कार के कारण से उसके जीवन के सोचने की पद्धति चेंज हो जाती है। कर्मसत्ता को संचालित करने का सामर्थ्य चेतना में है। कर्म को यदि हमने अवसर दिया तो कर्म हमें संचालित करते है यदि हमने उसको अवसर नहीं दिया तो कर्म हम जैसा चाहते है वैसा नाचते है। कर्म नचाने वाले नहीं तो मैं कर्म को नचाने वाला हूँ कि उसकी पूरी प्रक्रिया कि कैसे अपने अशुभ कर्मों को शुभ में ट्रांसफर किया जावे, कैसे पाप कर्म को पुण्य में रूपांतरित किया जावे। आगम में गया है कि बांधते समय पाप बांधा है लेकिन फल पुण्य पाया है बांधते समय पुण्य का बंध किया लेकिन फल पाप के रूप में मिलता है। बांधते समय भी पाप ही बांधा है और फल के रूप में भी पाप ही पाया, बांधते समय पुण्य बांधा और फल के रूप भी पुण्य पाया। ये चारों ही विकल्प शास्त्रों में गये है केवल एक ही विकल्प शास्त्र में नहीं गया है कि पाप बांधोगे तो पाप ही भोगागे और पुण्य बांधोगे तो पुण्य ही मिलेगा दूसरे भी दो विधान साथ में गए।
दूसरे भी विधान दिये गये है कि पुण्य को पाप में बदला जाता है, पाप को पुण्य में बदला जाता है और वो बदलने की क्रिया है, एक विज्ञान है, एक तकनीक है और उस तकनीक को जानना जरूरी है। उस तकनीक समझना जरूरी, है उस तकनीक को फोलो (Follow) करना जरूरी है। तकनीक बहुत सहज है – कैसे संक्रमण से निकलना है, कैसे परिवर्तन करना है। दूध में नमक गया, दूध की प्रकृति चेंज (Change) हो गयी है दूध में दही दिया तो तब भी दूध की प्रकृति चेंज हो गई। ये जो चेंज (Change) दुध में आता है वैसे ही अपने कर्मों में चेंज (Change) लाने के लिए कि कब अपने कर्मों में नमक डालना, कब दही डालना। इसको तय करना है। पाप कर्म का दूध है तो उसमें नमक डालिए, पुण्य कर्म का दूध हे तो दही दीजिए। जब वो दूध घी तक पहुँच जाए तो पाप कर्म में ऐसा नमक डालिए जिसके कारण पापकर्म का फल भुगतना न पडे। जैसे आज साइंस (Science) एग्रीकल्चर (Agriculture) में काम कर रहा है कि सीड (Seed) की सारी प्रकृति चेंज कर रहा है। नये नये डीनए (DNA) डालकर एक नई तकनीक तैयार हो चुकी है। वैसा ही इस कर्मा के कारण जो जेनेटिक फील्ड चेंज (Genetic Field Change) हुआ है उसमें भी चेंज (Change) लाया जा सकता है और वो चेंज (Change) लाने का विज्ञान – कर्म विज्ञान है। परिवर्तन भी लाया जा सकता है, बढ़ाया भी जा सकता है, घटाया भी जा सकता है, नया विधान भी लिखा जा सकता है। पुराने विधान को समाप्त भी किया जा सकता है। केवल बदलाव ही नहीं, जिसमें बदलाव नहीं ला सकते है उसको समाप्त कर देते है। जिसमें बदलाव नहीं ला सकते है, उसको न्यूनतम लेवल पर ले जा सकते है। यही कर्म का पूरा जैन दर्शन का अनूठा विधान है कि कर्म भोगने के लिए, धर्म नहीं तो कर्म का क्षय करने के लिए धर्म है। कर्म में परिवर्तन लाने के लिए धर्म है, मनुष्य कर्म का गुलाम नहीं है। कर्म का विधाता है सारी सत्ता के उसके हाथ में है उसे अपनी सत्ता को समझना चाहिए। उसका स्वभाव सिद्ध अधिकार है उसके पास कर्म के बंधन को स्वीकार करने का विकल्प भी और कर्म बंधन तोडने का का विकल्प। बुज्जिझाजा परिजाणिये — बंधन को जानो और बंधन को तोड़ो। ये प्रभू महावीर का संदेश साकार होता है कर्मा के प्रशिक्षण सत्र और वो प्रशिक्षण सत्र प्रबोधन का सत्र है, ट्रेनिंग (Training) का सत्र है। एक प्रकिया का सत्र है जिसको सहज रूप में संपन्न किया जाता है।